संदीप खमेसरा…✍️
उदयपुर। अमेरिकी स्टार्टअप हेलियोस्पेक्ट जीनोमिक्स ऐसे बच्चे पैदा करने में मदद कर रही है, जिनका आईक्यू 6 अंकों से भी अधिक तक बढ़ सकता है। माता पिता द्वारा दिए गए आनुवांशिक डेटा का विश्लेषण कर विशिष्ट एल्गोरिदम के प्रयोग से इसे संभव करने का दावा किया जा रहा है। यूजीनिक्स के जरिए भावी पीढ़ी को जेनेटिक आधार पर सुधारने का यह प्रयोग है। हालांकि, कई एक्सपर्ट्स इसके नतीजों को जोखिमपूर्ण भी बता रहे हैं। विज्ञान के प्रयोग सतत जारी रहेंगे…शायद पृथ्वी के खात्मे तक!!
आईक्यू लेवल बढ़ाने का सीधा तरीका है ‘ज्ञान’। ऊपरी या बाहरी ज्ञान नहीं! वह ज्ञान, जो भीतर से पैदा होता है।
चौबीस जैन तीर्थंकरों या भगवान बुद्ध के चित्र पर कभी ध्यान दिया है? उनके सर पर घुंघराले बालों जैसा जो दिखाई देता है, वह क्या है? निश्चित ही वे बाल नहीं हैं। वह प्रतीक है पूरी तरह से खुले हुए सहस्त्रार का! खुला हुआ सहस्त्रार, ज्ञान की चरमोत्कर्ष सीमा है, जिससे भूत, वर्तमान और भविष्य का समूचा ज्ञान हो जाता है। खुला हुआ सहस्त्रार, त्रिनेत्र को भी खोल देता है जिससे समस्त कालखंड की घटनाएं देखी जा सकती हैं। जैन इसे केवलज्ञान कहते हैं और बौद्ध इसे आत्मज्ञान!
इस देश ने हर कालखंड में ऐसे हजारों लाखों ऋषि मुनि दिए हैं, जो अपने तपोबल से ज्ञान की चरम अवस्थाओं को प्राप्त हुए! कई कई ग्रंथों की रचना उन्होंने की, जो हर देश काल और परिस्थिति में सर्वमान्य है। जीवन को आनंदपूर्ण जीने से लगाकर मुक्ति तक के सूत्र अपने ज्ञान के आधार पर ही तो दे पाए, जो आज तक प्रासंगिक हैं।
मस्तिष्क में ज्ञान का अनंत भंडार भरा पड़ा है। यह अनंत काल की स्मृतियों, अनुभवों, संवेदनाओं और ज्ञान की प्रचुरताओं को समेटे हुए है। मस्तिष्क में बंद इस खजाने के पिटारे तक पहुंचने का मार्ग रीढ़ की हड्डी से होकर जाता है। साधना में इसीलिए इसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। रीढ़ की हड्डी में इड़ा और पिंगला नाड़ियों को साधने से सुषुम्ना नाड़ी सक्रिय होती है। इसकी पहुंच मस्तिष्क के उन बंद पड़े खजाने तक होती है। सुषुम्ना के माध्यम से सांसों की चोट जब लगातार इनपर पड़ती है, तब इन खजानों के द्वार क्रमशः खुलने लगते हैं। शास्त्र कहते हैं, मस्तिष्क में हजार कमलदल हैं। इसीलिए इसे सहस्त्रार कहते है। ये प्रायः बंद रहते हैं। तप और साधना से यह खुलने लगते हैं। जैसे कमल का फूल खिलता है। इसी से ज्ञान अवतरित होने लगता है। बाहर से जानकारी (नॉलेज) प्राप्त की जा सकती है, लेकिन ज्ञान का द्वार भीतर से ही खुलता है। पूरा सहस्त्रार खुलने का अर्थ केवलज्ञान है, आत्मबोध है, संबोधी है।
…और जिसे स्वयं का बोध हो गया, वह बुद्ध है!
मानव जीवन में आकर छः से कुछ अधिक आईक्यू पर सेटल होना, घाटे का सौदा प्रतीत होता है। और वह भी इतने कोहराम के बाद, जिसमें जोख़िम की प्रचुरता है!
टटोलिए और खंगालिए पुरातन पद्धतियों के द्वार! एक बड़े संकल्प, और स्वयं को जानने की प्यास लिए पकड़ना होगा तप और साधना का कोई मार्ग, जिससे भीतर के ज्ञान पर से पर्दाफाश हो जाएगा। इसके उपरांत जिस स्पष्टता का अविर्भाव होगा उससे बड़े बड़े आईक्यू वाले भी पीछे रह जाएंगे।
है यदि इरादा….
तो शुभकामनाएं







