डी एस पालीवाल
उदयपुर में चल रहे 9वे उदयपुर फिल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन न केवल नई फिल्में प्रदर्शित की गईं, बल्कि दूसरे दिन की दिखाई नहीं गई फिल्में भी दर्शकों के सामने आईं। पूर्व निर्धारित हॉल के छिन जाने के बाद आयोजकों ने एक बड़े अहाते को सिनेमा हॉल में तब्दील किया, जिससे दर्शकों ने एक अद्भुत प्रयोग का आनंद लिया।
दिवस की शुरुआत में दस्तावेजी फिल्म “क्राइ टू बी हर्ड” प्रदर्शित की गई, जो भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों की बदहाल स्थिति को दर्शाती है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे भारत और अन्य देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत शरणार्थियों के अधिकारों का पालन किया है। निर्देशक सातवीगन ने साझा किया कि उन्हें एक तमिल बोलने वाले रोहिंग्या से मदद मिली।
इसके पश्चात, राजस्थान की सात युवा किशोरी फिल्मकारों की पहली फिल्म प्रदर्शित की गई, जिसमें बाल विवाह और लड़कियों के अधिकारों जैसे विषयों को उठाया गया। किशोरियों ने फुटबॉल खेलने और उनके सपनों के प्रति भी अपनी रोशनी डाली। इस दिन के अंत में, आदिवासी फिल्मकार बीजू टोपो की दस्तावेजी फिल्म “टापू राजी” प्रस्तुत की गई, जो झारखंड के आदिवासियों के जीवन को दर्शाती है।
फिल्म फेस्टिवल में प्रसिद्ध गुजराती फीचर फिल्म “हुं हुंशी हुंशीलाल” दिखाई गई, जो तीन दशकों से अनुपलब्ध थी। अंत में, युवा फिल्मकार पायल कपाड़िया की पुरस्कार विजेता फिल्म “ए नाइट ऑफ नोइंग नथिंग” प्रस्तुत की गई, जो 2016 के छात्र आंदोलनों की कहानी है। फेस्टिवल की कन्वेनर रिंकू परिहार ने सभी उपस्थित फिल्मकारों और दर्शकों का धन्यवाद किया और अगले वर्ष फिर मिलने का वादा किया।







