उदयपुर। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदयव वर्षावास में शुक्रवार को धर्मसभा को सबोधित करते हुए आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने कहा कि आत्मदीप को प्रज्ज्वलित करने के आध्यात्मिक अनुष्ठान में साधक अपनी आत्मा के बुझे दीप को जलाते हैं एवं जिनके आत्मदीप जलते हुए हैं उनमें तप-त्याग का तेल पूरते हैं। जो लोग वर्ष भर में, चातुर्मास में अधिक कुछ नहीं कर पाते वे भी पर्युषण के आठ दिनों में तप-त्याग, जप-ध्यान, साधना-आराधना में समर्पित रहते हैं। आत्मा से महात्मा और महात्मा से परमात्मा बनने के लिए स्वयं को धर्म के मार्ग पर पूरी शिद्दत से अग्रसर करना पर्युषण है। पर्युषण दूसरों की प्रवृ-िायों का नहीं, अपनी स्वयंकी वृ-िायों, आदतों के निरीक्षण का अवसर है। दूसरों की देखने से मन में असंतोष पैदा होता है, असंतोष से अशान्ति एवं अशान्ति से असमाधि पैदा होती है।
उपाध्याय जितेश मुनि जी म.सा. ने फरमाया कि सुख के भोगी को दु:ख का भोगी बनना ही पड़ता है। सुखी रहना है तो आत्मा को निर्भार बनाने का प्रयत्न हर समय करना चाहिए। श्रीसंघ अध्यक्ष इंदर सिंह मेहता ने बताया कि आज महासती श्री कुमुदश्री जी म.सा. एवं शशिकांता जी म.सा. ने साधकउठ, साधक बैठ प्रतियोगिता करवाई। युवा संघ ने 180 बालकों को दो वर्गोंमें अलग-अलग आसन प्रतियोगिता एवं पूंजणी प्रतियोगिता करवाई। कार्यक्रम में समाजसेवी भूपेन्द्र बाबेल, हिमत सिंह मेहता, मीठालाल लोढ़ा आदि उपस्थित रहे।







