डी एस पालीवाल
उदयपुर। 9वें उदयपुर फिल्म फेस्टिवल के उद्घाटन समारोह में प्रख्यात आदिवासी फिल्मकार बीजू टोप्पो ने मुख्य वक्ता के रूप में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि वे पिछले दो दशकों से प्रतिरोध का सिनेमा देखने के साक्षी रहे हैं। टोप्पो के अनुसार, यह सिनेमा वैकल्पिक आवाजों को मंच प्रदान करता है और दर्शकों तक पहुँचने का एक समग्र तरीका प्रस्तुत करता है।
टोप्पो ने आगे बताया कि सिनेमा केवल निर्माण की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि उसे दर्शकों के सामने लाना और उस पर संवाद करना भी महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि प्रतिरोध का सिनेमा एक ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार करता है, जो प्रदर्शन के साथ-साथ संवाद को भी बढ़ावा देता है।
फेस्टिवल के उद्घाटन पर एलजीबीटीक्यू एक्टिविस्ट मुस्कान ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि अभिनय के जरिए उन्हें एक नई पहचान मिली है और सिनेमा समाज को बेहतर बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मुस्कान ने अपनी व्यक्तिगत संघर्षों के साथ-साथ एलजीबीटीक्यू समुदाय की आवाज़ों को उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
फेस्टिवल में ‘एक जगह अपनी’ फिल्म का प्रदर्शन हुआ, जिसमें मुस्कान मुख्य कलाकार हैं। यह फिल्म उनकी यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें उन्होंने अपने अनुभव साझा किए और समाज में मौजूद भेदभाव के खिलाफ अपनी आवाज उठाई।
फिल्म फेस्टिवल में ‘थारू ईको वीव्स’ नामक पहली थारू भाषा की दस्तावेजी फिल्म भी प्रदर्शित की गई। इस फिल्म में थारू आदिवासी समुदाय की महिलाओं द्वारा घास से डलवा निर्माण की प्रक्रिया को दर्शाया गया है। महत्वपूर्ण यह है कि यह फिल्म नानकमत्ता पब्लिक स्कूल के छात्रों द्वारा बनाई गई है।
इस फिल्म के पीछे छह साल की मेहनत है, जिसमें ‘सिनेमा इन स्कूल’ नाम की पहल शामिल है। फिल्म के बाद, निर्देशक और छात्रों ने दर्शकों के साथ अपने अनुभव साझा किए, जिसमें उन्होंने अपने कार्य की प्रक्रिया के बारे में बताया।
इसके बाद ‘महारा पिच्चर’ फिल्म का प्रदर्शन किया गया, जो अहमदाबाद के बुधन थियेटर के साथियों द्वारा बनाई गई है। इस फिल्म में लॉकडाउन के दौरान छारा समुदाय और अन्य हाशिये के लोगों पर पड़े प्रभावों को चित्रित किया गया है। यह फिल्म उनकी कहानियों को सामने लाने का एक प्रयास है।
दर्शकों ने फिल्म के बाद छारा समाज के बारे में कई प्रश्न किए, जिनका उत्तर फिल्म टीम के आतिश इन्द्रेकर ने दिया। उन्होंने कहा कि छारा समुदाय को जन्मजात अपराधी का दर्जा मिलने के बावजूद, उन्होंने आत्मविश्वास के साथ एक अभिनेता बनने का प्रयास किया है।
फिल्म फेस्टिवल की शाम में फिलिस्तीनी फिल्मों का प्रदर्शन किया गया, जो फिलिस्तीन में हो रहे नरसंहार में मारे गए मासूम बच्चों को समर्पित था। इस कड़ी में मिशेल ख़लीफ़ी की “मा’लूल अपने विनाश का दिवस मनाता है” और डॉ. लुईस ब्रेहोनी की “कोफिया: ए रेवोल्यूशन थ्रू म्यूजिक” प्रदर्शित की गई।
फिल्मों की आखिरी कड़ी में, निष्ठा जैन की ‘इंक़लाब दी खेती’ ने संघर्षरत जीवन की कहानियों को प्रस्तुत किया। यह फिल्म ऐतिहासिक संघर्ष का एक जीवंत दस्तावेज है, जो निर्देशक और उनकी टीम के समर्पण को दर्शाती है।







